tag:blogger.com,1999:blog-90725001016215597682023-11-15T10:27:16.840-08:00 दायराUnknownnoreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-86723381508432872972008-03-26T07:33:00.000-07:002019-08-20T12:52:40.787-07:00कीचड़ में खोया गुलुबन्दराजा तो मैं कभी रहा नहीं। न तो किसी ज्योतिषी ने कभी राजगद्दी पर बैठने की बात बताई है। वैसे उम्मीद पर जिन्दा जरूर हूं कि इत्तिफाक से ‘कोई मिल गया’ तो शायद राजभोग करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए। उम्मीद इसलिए पुख्ता होती दिखती है कि ‘कल तक जो बेचते थे दवा-ए-दिल वह दुकान अपनी बढ़ा चले’ और गद्दीनशीन बन कर गुलछर्रे उड़ाने लगे।<br />बहरहाल सबकी किस्मत अलग-अलग लिखी जाती है। यह लिखने वाले के मूड पर निर्भर Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-16802294372297051362008-03-10T08:21:00.000-07:002019-08-20T12:52:41.026-07:00हम किधर जा रहें?लोगों में गजब की बेचैनी है। दौड़ती दुनिया के साथ दौड़ने वाले अक्सर बेतुका सा सवाल पूछते हैं 'अमाँ भाई यह दुनिया जा किधर रही है? है न बेतुका सा सवाल? जैसे मैंने दुनिया का ठेका ले रखा है। जाहिर सी बात है कि आज कि तारीख में खुद दुनिया बनाने वाला उतर आए तो उसकी समझ में नही आएगा कि उसकी बनाई दुनिया किधर जा रही है?<br />इसके अलावा जुगराफिया की जमात में दिखने वाला ग्लोब तो हैं नही दुनिया, जिसकी चाल समझ में आUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-40330266032036778922008-03-09T08:48:00.000-07:002019-08-20T12:52:41.268-07:00खिचड़ी भोज का लुत्फआजकल अपने लंगोटिया यार मीर साहब ‘खिचड़ी भोज’ के पीछे दीवाने बने हुए हैं। कहते हैं कि जितना मजा इफ्तार पार्टी में नहीं आता है उससे ज्यादा मजा ‘खिचड़ी भोज’ में आता है क्योंकि उसमें खाने वाले कई आइटम होतें हैं। खिचड़ी एक शार्टकट रास्ता होता है। भई खाने का मौज तो बस इसी में मिलता है। आए दिन अपने मीर साहब का नाम खिचड़ी भोज में शामिल होने की वजह से अखबार में फोटो सहित सुर्खियों में रहा करता है। यही Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-31398356116844100472008-03-09T08:32:00.000-07:002019-08-20T12:52:41.481-07:00स्वयंवर होना चाहिए।भाई सुना है, पढा़ है कि पुराने जमाने में स्वयंवर का आयोजन किया जाता था जिसमें कन्याएं बन-ठन कर आए राजे-महाराजाओं का बड़े ध्यान से जायजा लिया करती थीं और जो पसंद आता था, उसे जयमाल पहना कर अपना जीवन साथी बना लिया करती थीं। जैसे-जैसे दिन बीतते गए और शोरे पुस्ती बढ़ती गई, लोग जबरन अपने गले में जयमाल डलवाने के लिए अपनी शक्ति का साइनबोर्ड टांगे हुए स्वयंवर में तशरीफ ले जाते थे। पृथ्वीराज चौहान और Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-81453322032299610162006-01-06T02:12:00.000-08:002019-08-20T12:52:41.690-07:00स्वदेशी अंगना, परदेशी बिजलीस्वदेशी अंगने में परदेशी बिजली का क्या काम? यूं तो स्वदेशी बैठक में ‘परदेशी-परदेशी’ गाना खूब जमता है लेकिन कभी किसी परदेशी के आ जाने पर सबके चेहरे का नक्शा बदल जाता है। अब यह तो अपने मिजाज़ की बात है। उनका भी जवाब नहीं जिन्होने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते हुए अचानक ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ गाना शुरू कर दिया। एक वो लोग भी थे जिन्होनें महाराणा प्रताप की जन्मभूमि को नमन करते हुए दिलफेंक परदेशी Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-89165300017325512002005-08-30T20:56:00.000-07:002019-08-20T12:52:41.902-07:00कलमकारों की माया होली मेंअमां कमाल है। लोगो की कलम कैसे कैसे करवट बदलती है? लिखने वाले कलम तोड़कर स्याही गटक जाते हैं। वह तो कहिए भला हो उनका जिन्होंने स्याही को सालिड बनाकर कलम में भर दिया वरना सभी लेखक मिलकर बरसाने में गाना शुरू कर देते ‘मेरा गोरा रंग लै ले, मुझे श्याम रंग दै दे।’ फिर समां जब होली का हो तो क्या कहने। भंग की तंरग में बेसुरे भी सुर में रेंकते-रेंकते दुल्लती चलाने से बाज नहीं आते हैं। लत्ती की आग में अगर Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-3262515747488787362005-08-30T20:51:00.000-07:002019-08-20T12:52:42.106-07:00राहत की चाहतइन दिनों मीडिया वाले खास तौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों के पास बस तीन ही मुद्दे रह गये हैं। पहला सुनामी लहरों से हुयी क्षति के आंकड़े गिनाना, दूसरा सुनामी लहरों से दुनिया को बचाने के लिए साईंसदानो और ज्योतिषियों में नया जोश भरना और मदद के लिए लोगों से अपील करना। तीसरा मुददा है आज उनके सामने तमिलनाडु सरकार में राजनीति की सुनामी लहरों को नजदीक से पढ़ना। महीने पन्द्रह दिनों तक यही सिलसिला चला करताUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-72949466908245524682005-08-30T20:43:00.000-07:002019-08-20T12:52:42.317-07:00लाश वही है सिर्फ कफन बदला हैमेरे विचार से कुदरत की कारगुजारी भी कुछ कम नही है। इन्सानी जीव को उसने ऐसे फुर्सत के वक्त गढ़ा है कि जरूरत पड़ने पर उसके चेहरों के गेटअप को किसी भी तरह के मुखौटों से बदला जा सके। चेहरे वही रहते है सिर्फ मुखौटे बदल जाते है और यह एक ऐसा निरीह प्राणी है कि वक्त की नजाकत और मुखौटे की रंगत के हिसाब से अपने को ढाल लेता है, लेकिन कमाल यह है कि कुदरत ने इस रंगमंच पर कुछ करेक्टर ऐसे खड़े कर दिये जिनकी Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-83259444450358540452005-08-13T11:55:00.000-07:002019-08-20T12:52:42.530-07:00संजीवनी को ढूंढ़ने की जरुरतउस दिन मेरे सामने था एक सभागार की चहार दीवारियों में सिमटा-सिमटा एक ‘जनक्षेत्र’। वही जनक्षेत्र जो शायद इन दीवारों से बाहर निकल कर शहर राज्य और राष्ट्र की भारी भरकम आबादी में तब्दील हो जाता है और मैं उसकी एक इकाई मात्र रह जाता हूं जो कभी विद्रोहावस्था में सुनामी लहरों की तरह कहर बरपा कर सकता है।<br />मैं कई बार यह अल्फाज़ गुरूओं पीर पैगम्बरों और देश के जाने पहचाने नेताओं से भी सुनता रहता हूं। फिर एक Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-9674186979169695422005-08-10T12:12:00.000-07:002019-08-20T12:52:42.740-07:00मूर्ख दिवस की जय बोलोमहामूर्ख दिवस की पूर्व संध्या पर दुनिया के तमाम समझ-समझ कर नासमझ लोगों का हार्दिक अभिनन्दन। कितनी सदियां बीत गयी हाय तुम्हें समझाने में। लोगों ने कितनी बार वही रटे रटाये मंत्र का जाप घिसे-पिटे तरीके से सुनाया ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ’ पर अपने दुनिया भर के मूर्ख कामरेडो ने दूर दूरदृष्टि और पक्का इरादा नहीं छोड़ा। अपनी परम्परा को पीढ़ी-दर पीढ़ी बुलन्दी की सीढ़ी पर चढ़कर फहराने में कोई कसर न छोड़ी। Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-69732166455357748472005-08-08T10:15:00.000-07:002019-08-20T12:52:42.953-07:00राजा की आयेगी बारातभई जिस हसीना बिजलीबाई का दीदार पाने को अपने शहर वाले तरसते रहें। आज वह जब महफिल में रूबरू होकर ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’ पर जी खोलकर थिरक उठी तो लोगों की बाछें खिल गई। बहुत से लोग तो मुंह बाये हुए बिजलीबाई की बांकी अदा पर जान छिड़क उठे। अपनी हैरत भरी निगाहों को देखकर गली के नुक्कड़ से आते हुए ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ बने मीर साहब ने कहा, ‘अमां क्या चुचके हुए आम की तरह Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-78395191188173197832005-08-07T04:36:00.000-07:002019-08-20T12:52:43.172-07:00महंगाई फैशन के आईने मेंलोग कहते हैं कि महंगाई बहुत बढ़ गयी है। कहते होंगे –लोगों का काम है कहना। कुछ लोग यूं ही बात का बतगड़ बना लेते हैं। सब तो नही कहते हैं। क्योंकि सब कहते तो देश में न जाने क्या हो जाता। भारी आफत आ जाती। दूसरी तरह की सुनामी लहरों का कहर बरपा हो जाता। मगर कुछ लोग कहते होंगे जिनका समाज में कोई वजूद नहीं है।<br />मैंने भी गोकुल चाय वाले की दुकान पर सुना है। तालिब भाई के होटल पर सुना है। जिन्हें कोई काम धंधाUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-4565360136670745212005-08-05T11:01:00.000-07:002019-08-20T12:52:43.412-07:00हकीकत को हिकारत से देखिएमेरे सामने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के एक समारोह का निमंत्रण पत्र रखा है। सोचता हूं जब बुलाया गया है तो कुछ न कुछ बोलना ही पड़ेगा। किसी को जिस तरह छपास रोग लग जाता है तो छूटने का नाम नहीं लेता है उसी तरह मुझे सभा समारोहों में माइक से चिपके रहने की आदत सी हो गयी है। क्या बोलता हूँ कैसे बोलता हूँ या सुनने वाले कितना बोर हो रहे है, उस वक्त मुझे इन सबसे कोई मतलब नहीं होता है। माइक छोड़ने को जी नहींUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-47997144623774684092005-08-04T12:17:00.000-07:002019-08-20T12:52:43.618-07:00कहैं कबीर सुनो भाई साधो...आये भी वह गये भी खत्म फ़साना हो गया। पार्टी वालों की बल्ले-बल्ले रही। उधर नेता जी ने एक काम जरुर शानदार या बेमिसाल किया कि कबीर बाबा को समाजवादी की सदस्यता दे डाली। अब सुना जा रहा है कि बीनी बीनी रे झीनी चदरिया गा गा कर नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे घुमक्कड़ कबीर बाबा अपने राजनीतीकरण पर काफी परेशान दिख रहें हैं। नेता जी के जाने के बाद बिजली बाई की नौटंकी के उजडे़ स्टेज के पास उनसे अचानक मुलाकात हो गयी।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-7958764728605264032005-08-04T11:56:00.000-07:002019-08-20T12:52:43.834-07:00हमने मीडिया प्रभारी बनना सीख लियावैसे जनाब इतना समझ लीजिए कि जो नुस्खा यहां बतलाने के लिए कलम घिसी जा रही है वह मरहूम हकीम लुकमान और भाई लक्ष्मण की चंगा करने वाले सुषेण वैध के पास भी नहीं था। काबिलीयत में उनके दस ग्राम की भी कमी नहीं थी लेकिन उनके जमाने में ऐसी बीमारी थी ही नहीं। इस जमाने के यह बीमारी इतनी सुखद हो गयी है कि हर कोई इसमें मुफ्तिला होने के लिए अथवा सब कुछ कुर्बान करने को तैयार बैठा है।<br />बीमारी का नाम है मीडिया Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-59470000309221909532005-08-04T11:53:00.000-07:002019-08-20T12:52:44.046-07:00अतिक्रमण करो, मगर सड़क पर नहींशहर के हर नुक्कड़ पर इन दिनों बस एक ही चर्चा है-‘अतिक्रमण हटाओ अभियान।’ पैन्ट उतार चड्ढी पहन अभियान। विनाश चैनल पर विकास का बाइस्कोप। बात भी एकदम सौ परसेन्ट सही है कि विनाश के बाद ही सृजन की प्रक्रिया शुरू होती है। वैसे अतिक्रमण हटाओ अभियान से अपने को क्या लेना देना? लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब लोग कहा करते थे कि ‘तेरा मुण्डा बिगड़ा जाये’ तो किसी को फिक्र नहीं रही। जब ‘मुण्डा’ बुरी तरह बिगड़Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-59506856247599888042005-08-04T11:49:00.000-07:002019-08-20T12:52:44.260-07:00एक हवेली सूनी-सूनी सी...जी, यह है मार्टिन बर्न के जमाने की ऐतिहासिक इमारत। है तो बहुत पुरानी मगर उसकी खीसें काढ़ती एक-एक ईंट शहर को जगमगाने का दावा कर रही हैं। मार्टिन बर्न तो शायद अल्लाह को प्यारे हो चुके हैं। उनके जमाने को मधुर स्मृति भी खो चुकी है पर उनके वक्त की यह बे पेवन्द बिल्डिंग शहरवालों की जान ले रही है। सुना है आजकल यह ‘पाकीज़ा’ किसी बिगड़ैल ठाकुर साहब की रखैल बनी हुयी है। इसलिए इन दिनों शहर वाले इसे ठाकुर कीUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-29205249455534249952005-08-04T11:45:00.000-07:002019-08-20T12:52:44.464-07:00बुर्जुग बने सीनियर सिटीजनमाना कि जमाना जवानों का है। रानी मुखर्जी और विपाशा बसु का है। आर्केस्ट्रा और पॉप म्यूजिक का हैं। जमाना चाऊमिन और पिज्जा का है, पर मुझे तो अभी भी इतवारिया के मुंहफट घरवालों के हाथ का बाटी-चोखा बहुत पसन्द है। चोपई उस्ताद की नौटंकी आज भी बहुत याद आती है। सुरैया और मल्लिका-ए-तरन्नुम् नूरजहाँ के गाने आज भी कान में बजा करते हैं।<br /> मैं जानता हूँ कि उगते सूरज को सब प्रणाम करने में विश्वास करते हैं। Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9072500101621559768.post-5536600918823329282005-08-04T11:20:00.000-07:002019-08-20T12:52:44.666-07:00दो गज जमीन भी न मिल सकी...अख्तरी आज बहुत याद आ रही है। पागल दास की याद में पागल बना जा रहा हूँ। उनकी ग़ज़ल, उनकी पखावज़ उनका साज़, उनकी आवाज़ जैसे मेरे दोनों कानों की संकरी गली में घुसते हुए सुना रहे हो। "मरने के बाद भी चर्चा नहीं हुई तेरी गली में" सोचता हूँ खूब गिले शिकवे करूं। अपने शहर के भारी भरकम अलम्बरदारों और कला के मृदंग की थाप पर अंग-अंग फड़काने वालों पूछूं की उन्होंने बेचारी अख्तरी का नामोंनिशान मिटा देने की कसम Unknownnoreply@blogger.com0