Tuesday, 30 August 2005

कलमकारों की माया होली में

अमां कमाल है। लोगो की कलम कैसे कैसे करवट बदलती है? लिखने वाले कलम तोड़कर स्याही गटक जाते हैं। वह तो कहिए भला हो उनका जिन्होंने स्याही को सालिड बनाकर कलम में भर दिया वरना सभी लेखक मिलकर बरसाने में गाना शुरू कर देते ‘मेरा गोरा रंग लै ले, मुझे श्याम रंग दै दे।’ फिर समां जब होली का हो तो क्या कहने। भंग की तंरग में बेसुरे भी सुर में रेंकते-रेंकते दुल्लती चलाने से बाज नहीं आते हैं। लत्ती की आग में अगर

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