महामूर्ख दिवस की पूर्व संध्या पर दुनिया के तमाम समझ-समझ कर नासमझ लोगों का हार्दिक अभिनन्दन। कितनी सदियां बीत गयी हाय तुम्हें समझाने में। लोगों ने कितनी बार वही रटे रटाये मंत्र का जाप घिसे-पिटे तरीके से सुनाया ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ’ पर अपने दुनिया भर के मूर्ख कामरेडो ने दूर दूरदृष्टि और पक्का इरादा नहीं छोड़ा। अपनी परम्परा को पीढ़ी-दर पीढ़ी बुलन्दी की सीढ़ी पर चढ़कर फहराने में कोई कसर न छोड़ी।
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