माना कि जमाना जवानों का है। रानी मुखर्जी और विपाशा बसु का है। आर्केस्ट्रा और पॉप म्यूजिक का हैं। जमाना चाऊमिन और पिज्जा का है, पर मुझे तो अभी भी इतवारिया के मुंहफट घरवालों के हाथ का बाटी-चोखा बहुत पसन्द है। चोपई उस्ताद की नौटंकी आज भी बहुत याद आती है। सुरैया और मल्लिका-ए-तरन्नुम् नूरजहाँ के गाने आज भी कान में बजा करते हैं।
मैं जानता हूँ कि उगते सूरज को सब प्रणाम करने में विश्वास करते हैं।
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