Thursday, 4 August 2005

दो गज जमीन भी न मिल सकी...

अख्तरी आज बहुत याद आ रही है। पागल दास की याद में पागल बना जा रहा हूँ। उनकी ग़ज़ल, उनकी पखावज़ उनका साज़, उनकी आवाज़ जैसे मेरे दोनों कानों की संकरी गली में घुसते हुए सुना रहे हो। "मरने के बाद भी चर्चा नहीं हुई तेरी गली में" सोचता हूँ खूब गिले शिकवे करूं। अपने शहर के भारी भरकम अलम्बरदारों और कला के मृदंग की थाप पर अंग-अंग फड़काने वालों पूछूं की उन्होंने बेचारी अख्तरी का नामोंनिशान मिटा देने की कसम

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